सिस्टेमिक लुपस एरिथेमेटोसस – Systemic Lupus erythematosus (Lupus / लुपस) hindi mein jaankari

सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (SLE / ल्यूपस) एक ऑटोइम्यून बीमारी है। आम तौर पर, प्रतिरक्षा प्रणाली (रोग प्रतिरोधक शक्ति / इम्युनिटी)  हमारे शरीर को संक्रमण और कैंसर जैसी कई बुरी चीजों से बचाने में मदद करती है। ल्यूपस जैसी ऑटोइम्यून बीमारियों में, किसी की खुद की ही प्रतिरक्षा प्रणाली अधिक सक्रिय होकर अपने शरीर पर हमला करना शुरू कर देती है।

यह बिमारी किसी भी उम्र में हो सकती है।  (ज्यादातर 15 से 45 साल में होती है, लेकिन  लेकिन बच्चों में भी हो सकती है)। यह बिमारी पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक देखि जाती है।

कृपया ध्यान दें कि हम इस लेख में SLE / ल्यूपस) शब्द का उपयोग करेंगे। दोनों का मतलब एक ही बीमारी होगा।

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SLE बिमारी होने का कोई एक कारण  नहीं मिल पाया है। ल्यूपस की रिस्क अमुमम व्यक्ति के शरीर की विभिन्न  जीन्स (genes) की सरंचना पर निर्भर करता है | खोज और रिसर्च से यह भी पता चला है की लुपस (SLE) होने की सम्भावना में शायद व्यक्ति के बाहरी वातावरण का भी कोई योगदान है | बाहरी वातावरण जैसे सूर्य के प्रकाश के संपर्क, कुछ दवाओं, वायरस, तनाव आदि से भी SLE या लुपस हो जाने की रिस्क से जुड़ा हुआ पाया  है। हालांकि, लगभग सभी रोगियों में, किसी एक जीन या एक अनुवांशिक तत्त्व या एक प्रकार के  वातावरण सम्पर्क को दोष नहीं दिया जा सकता । यह कई चीजों या कारकों  का एक संयोजन है जो किसी को SLE या लुपस  होने का कारण बनता है।

जब कोई एक कारण ही नहीं है तो इस बिमारी से बचने के लिए कुछ विशेष करना संभव नहीं है | और इन्ही उपरोक्त कारणों की वजह से किसी भी लुपस पेशेंट को उनकी यह बिमारी होने में उनका कोई दोष होने का आरोप नहीं लगाना चाहिए |

हालाँकि इस बिमारी में हमारे शरीर की जीन्स की सरंचना का रोल है, लेकिन जैसा की हमने कहा की इस बीमारी में काफी बाह्य कारको का सयोंजन भी  होता है |  इसीसलिए यह बिमारी ज्यादार अनुवांशिक या हेरेडिटरी नहीं होती |  इसका मतलब यह है की एक ही परिवार में दो लुपस के पेशेंट या रोगी ज्यादातर नहीं मिलते | इसका यह भी मतलब है की यह बिमारी  माता पिता से बच्चे में डायरेक्ट (सीधे) ट्रांसफर नहीं होती |

SLE शरीर के किसी भी सिस्टम या अंग को प्रभावित कर सकता है। ल्यूपस के रोगी कई अलग-अलग प्रकार के लक्षण विकसित कर सकते हैं।

सबसे आम ल्यूपस लक्षण निम्नलिखित है

  • थकान
  • त्वचा पर चकत्ते, जो धूप के संपर्क में आने पर खराब हो जाते हैं। कई रोगियों के चेहरे पर तितली के शेप या रूप में नाक और गालों पर दाने या लाल चकत्ते हो जाते हैं।इसे बटरफ्लाई रैश (तितली रूपी चकत्ते) कहा जाता है।(नीचे दिया हुए  फोटो देखिये)
  • जोड़ों का दर्द, सुबह उठने में जकड़न और जोड़ों में सूजन
  • मुंह या नाक में लगातार अल्सर (या घाव)
  • अचानक बाल झड़ना
  • हाथो और पैरों की उँगलियाँ, ठंडी होने पर या ठन्डे पानी के सम्पर्के में आने पर, खून के बहाव के काम होने से दर्द होकर सफेद या नीले रंग की हो जाती है | यह कुछ समय के लिए होकर फिर नार्मल हो जाती हैं | यह प्रक्रियां बार बार हो सकती हैं |

ल्यूपस रोगियों में निम्न लक्षण या समस्याएं भी  हो सकती हैं,

  • वजन घटना
  • बिना किसी संक्रमण के बार-बार बुखार आना
  • सांस लेते समय छाती में दर्द
  • सिरदर्द और मस्तिष्क की समस्याएं (जैसे फिट या दौरे, मिजाज या मूड बदलना , स्पष्ट रूप से सोचने में कठिनाई, अचानक मानसिक या असामान्य व्यवहार, स्ट्रोक या पैरालिसिस – पक्षाघात )
  • हाथ, पैर या आंखों में सूजन
  • आँखों की समस्या – लालिमा, दृष्टि की समस्या
  • मांसपेशी में कमज़ोरी
  • बार बार गर्भपात होना , खून का थक्का जमना आदि।
  • उल्टी, दस्त होना
  • कम यूरिन पास करना

इत्यादि

यहां ल्यूपस के सभी लक्षणों को सूचीबद्ध करना संभव नहीं है । इसके अलावा, किसी भी एक उपरोक्त लक्षण होने का अर्थ यह नहीं है कि किसी में ल्यूपस है। इनमें से कई लक्षण जैसे बाल झड़ना, थकावट, मुंह के छाले, सूजन आदि बिना लुपस बिमारी के भी लोगों में बहुत आम हैं। ल्यूपस विशेषज्ञ यह सुनिश्चित करते हैं कि किसी मरीज को अन्य सामान्य कारणों से ये लक्षण नहीं हैं। अधिकांश ल्यूपस रोगियों में कई लक्षणों का संयोजन होगा और निदान या बिमारी होने की पुष्टि करने के लिए विशेषज्ञ आगे के परीक्षण या जांचे करेंगे।

वैसे तो SLE / लुपस बिमारी किसी भी अंग को प्रभावित कर सकती है, पर इस बिमारी के काफी रोगियों में  जोड़ प्रभावित होकर सूजन आ जाती और इसलिलिये इस बिमारी को एक प्रकार के सन्धिवात रोगों में से एक गिना जाता है  | जैसा पहले बताया गया है. इस बिमारी में रोगी की रोग प्रतिरोधक शक्ति (इम्युनिटी) भी अधिक सक्रिय हो जाती है और इसीलिए इससे ऑटोइम्म्युन बिमारी भी कहते है | ऐसे  रोग रह्युमटोलॉजिस्ट डॉक्टर देखते है, जो ऐसी ऑटोइम्म्युन बिम्मारियों और सन्धिवात रोगों के विशेषज्ञ होते है | इन  बीमारियों के फील्ड को रह्युमटोलोजी  कहा जाता है | रह्युमटोलॉजिस्ट लुपस रोगी के लक्षण अनुसार अन्य स्पेशलिस्ट जैसे की स्किन स्पेशलिस्ट ( डर्मेटोलॉजिस्ट), किडनी स्पेशलिस्ट  (नेफ्रोलॉजिस्ट ), सहायता / ओपिनियन  भी ले सकते है |

ल्यूपस के उपचार के लिए विभिन्न प्रकार की दवाओं का उपयोग किया जा सकता है। मरीज को कितनी गंभीर बीमारी है और कौन से अंगो पर असर है, इसके अनुसार उन्हें सलाह दी जाती है। उपचार का मुख्य उद्देश्य ल्यूपस बीमारी को नियंत्रण में लाना और अंग क्षति को रोकना है।

ल्यूपस में उपयोग की जाने वाली दवाएं रोगी में उसके ही शरीर की अधिक सक्रिय रोग प्रतिरोधक शक्ति (इम्युनिटी) को नियंत्रित करती हैं। वे विभिन्न अंगों में सूजन को कम करने में भी मदद करते हैं।

  • नॉन -स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं (NSAID): ये इबुप्रोफेन (Brufen, Combiflam), नेप्रोक्सन (Naproxen), ईटोरिकॉसिब (Etoricoxib) आदि जैसी दवाएं हैं| यह खासकर तब प्रयोग की जाती है जब रोगी को जोड़ो में दर्द या सूजन है तो । आम आदि की भाषा में कहे तो इन्फ्लेम्शन का मतलब होता है सूजन | वैसे तो NSAID दवाइयों को बाजार में पेनकिलर कहा जाता है , लेकिन हमारा इन दवाइयों को देने का परम उद्देश्य सूजन या इन्फ्लेम्शन को काम करना होता है | अगर सही तरीके से इनको दिया जाए तो रोगी को बिना नुक्सान के काफी फायदा हो सकता है |
  • हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine,HCQ) और क्लोरोक्वीन (Chloroquine) जैसी दवाएं: वे मूल रूप से मलेरिया के इलाज के लिए खोजी गयी थी, लेकिन यह दवाईआं ल्यूपस रोगियों में बहुत मदद कर सकती हैं।
  • स्टेरॉयड (Steroid) और अन्य दवाएं [जैसे Methotrexate – मिथोट्रेक्सेट, Azathioprine – एज़ैथियोप्रिन, Mycophenolate –  मायकोफेनोलेट, Cyclophosphamide – साइक्लोफॉस्फेमाइड, Rituximab – रीटक्सिमैब आदि): ये ओवरएक्टिव या अधिक सक्रिय इम्यून सिस्टम को नियंत्रित करने या दबाने में मदद करते हैं। स्टेरॉयड का उपयोग आमतौर पर केवल शुरुआत में किया जाता है जब बीमारी मध्यम से गंभीर होती है। वे राहत देने और अंग क्षति को रोकने के लिए बीमारी को नियंत्रित करने में बहुत सहायक हैं। बाद में हम नियंत्रण बनाए रखने के लिए अन्य दवाओं का उपयोग करते हैं और स्टेरॉयड को कम करते हैं।

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SLE  / लुपस  गंभीर बीमारी हो सकती है। लेकिन, SLE रोगी के अधिकांश लोग अच्छे जीवन जी सकते हैं, बशर्ते वे विशेषज्ञ (रह्युमटोलॉजिस्ट) को दिखाएं और उनकी सलाह का पालन करें। SLE के फील्ड (क्षेत्र) में  में निरंतर शोध ने विशेषज्ञों को पिछले 20-30 वर्षों में बहुत जानकारी दी है | अब रहेयूएमटोलॉजिस्ट और अन्य विशेषज्ञ Lupus रोग का उपचार काफी अच्छे तरीके से कर सकते हैं |

SLE के लिए अभी भी कोई स्थायी इलाज नहीं है। ल्यूपस के रोगियों के जीवन में यह बिमारी अमूमन आजीवन रहेगी । जिस तरह डायबिटीज के रोग का परमानेंट उपचार नहीं है , वैसे ही यह SLE रोग है | जैसे डायबिटीज रोग में शुगर को दवाई और सेहतमंद दिनचर्या से कण्ट्रोल किया जा सकता है, वैसे ही लुपस रोग में दवाइयों से बिमारी को काफी अच्छे तरीके से कण्ट्रोल किया जा सकता है | जैसा  कि उल्लेख किया गया है, हमारे पास बहुत अच्छा उपचार उपलब्ध है और विशेषज्ञ SLE रोगियों को एक अच्छा जीवन देने के लिए अधिकतम सहायता प्रदान करते हैं।  कुछ रोगियों में SLE बीमारी लंबे समय तक समस्याओं के बिना भी शांत हो सकती है।

जितना अच्छे से रोगी विशेषज्ञ द्वारा SLE या लुपस का इलाज सही तरह से लेंगे, उतना उनकी बिमारी से कोई आगे होने वाली जटिलताओं (कॉम्प्लिकेशन) से बचा जा सकता है | अमूमन यह भी देखा गया है की सही इलाज लेने से इन रोगियों का स्वास्थ्य  तो ठीक रहता ही है, पर ऐसे रोगियों में दवाइयां भी काम लगती हैं  और आगे बिमारी से खर्चा भी कम लगता है |

ल्यूपस एक गंभीर बीमारी हो सकती है। SLE के एलोपैथी उपचार ने पिछले 20 – 30 वर्षों में निरंतर अनुसंधान के साथ बहुत सुधार किया है और अधिक शोध के साथ सुधार जारी है।

इस बात का कोई अच्छा और गहन प्रमाण नहीं है कि अन्य विकल्प (होम्योपैथी, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा) SLE रोग को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इन उपचारों की कोशिश करने वाले कई रोगी अंग क्षति का विकास करते हैं जो अपरिवर्तनीय है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यदि ल्यूपस को अच्छी तरह से नियंत्रित नहीं किया जाता है, तो इससे अंग को नुकसान हो सकता है।

एलोपैथी चिकित्सा का एकमात्र रूप है जिसे SLE / लुपस  रोगियों में संदेह के बिना काम करते हुए  दिखाया गया है। लुपस  रोगियों में अंग क्षति को रोकने के लिए एलोपैथी रूपी चिकित्सा ही निसंदेह सिद्ध साबित हुई है |

कई जड़ी-बूटियां या पूरक हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय कर सकते हैं और गुर्दे और यकृत की विफलता का कारण बन सकते हैं। यह ल्यूपस रोगियों के लिए हानिकारक हो सकता है क्योंकि उनकी मुख्य समस्या अतिसक्रिय प्रतिरक्षा प्रणाली (रोग प्रतिरोधक शक्ति) है। यदि आप अपने एलोपैथी उपचार के साथ कोई अतिरिक्त सप्लीमेंट या चिकित्सा लेने की योजना बना रहे हैं, तो कुछ भी नया करने से पहले अपने विशेषज्ञ डॉक्टर से इस बारे में चर्चा करें।

सामान्य महिला के गर्भधारण (प्रेगनेंसी) की तुलना में लुपस से ग्रस्त महिलाओं की गर्भावस्था में समस्याओं की संभावना अधिक होती है। हालांकि, अगर चीजें ठीक से की जाती हैं, तो अधिकांश ल्यूपस रोगियों में स्वस्थ बच्चे होते हैं। जैसा की हमने पहले बताया है, ल्यूपस एक वंशानुगत बीमारी नहीं है और यह माँ या पिता से बच्चों में  ट्रांसफर नहीं होती ।

यदि आप निकट भविष्य में गर्भावस्था (प्रेगनेंसी) की योजना बनाना चाहते हैं, तो अपने उपचार करने वाले चिकित्सक को यह बताना महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञ आपको मार्गदर्शन कर सकता है और गर्भावस्था में समस्याओं से बचने के लिए उचित उपाय कर सकता है। उदाहरण के लिए, यदि आपकी बिमारी सक्रिय है तो विषेशज्ञ गर्भ धारण ना करने की सलाह  देंगे। कम से कम 6 महीने तक आपकी बीमारी अच्छी तरह से नियंत्रित हो जाने पर, डॉक्टर की सलाह के बाद प्रेग्नन्सी को सुरक्षित रूप से नियोजित किया जा सकता है।

  • एक स्वस्थ जीवन शैली रखें: यह ल्यूपस रोगियों को बहुत मदद कर सकता है। स्वस्थ आहार खाएं – बहुत सारी सब्जियां, फल, डेयरी उत्पाद (दुध , दही, पनीर ) | ज्यादा चीनी और तले  हुए खाद्य पदार्थों से बचें | सक्रिय रहें। घर पर हो सकने वाले  हल्के फुल्के व्यायाम करें | जितना हो सके चलने की कोशिश करें  और जब भी संभव हो तो सीढ़ियों का उपयोग करने की कोशिश करें – सक्रिय या एक्टिव रहने से और वर्जिश से रोगियों को मांसपेशियों और हड्डियों को मजबूत रखने में मदद होती  है। धूम्रपान या अन्य व्यसनों से बचें। मानसिक और शारीरिक तनाव से बचने / प्रबंधित करने का प्रयास करें या मैडिटेशन की सहायता लें |
  • अधिक सूरज के संपर्क में आने से बचें: सूरज / धुप से लुपस की बिमारी में स्किन की प्रॉब्लम बढ़ सकती है और शायद बिमारी भी तीव्र हो सकती है । कम से कम 30 SPF – सन प्रोटेक्शन फैक्टर वाले एक अच्छे सनस्क्रीन का प्रयोग करें या डॉक्टर की सलाह लें।
  • ल्यूपस विशेषज्ञ (रुमेटोलॉजिस्ट) को दिखाएं: उनके निर्देशों का पालन करें
  • SLE के बारे में शिक्षित हों: रोगियों को अच्छी जानकारी होना और उनकी बीमारी के बारे में शिक्षित होना बहुत ज़रूरी है, ताकि वे बेहतर उपचार निर्णय ले सकें। उन्हें अपने डॉक्टर से रोगी सूचना सामग्री प्रदान करने के लिए कहना चाहिए।
  • गर्भावस्था या प्रेगनेंसी कब हो इससे प्लान करें : यदि आप गर्भावस्था की योजना बनाना चाहते हैं तो अपने रुमेटोलॉजिस्ट / डॉक्टर को बताएं।डॉक्टर पप्रेगनेंसी या गर्भ धारण करने की हिदायत लुपस बिमारी कण्ट्रोल होने पर ही देंगे | जब तक कि बीमारी नियंत्रित न हो जाए, तब तक डॉक्टर गर्भ धारण (प्रेगनन्सी) ना हो, इसके लिए उचित उपायों के प्रयोग में मार्गदर्शन कर सकते हैं |

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